Tuesday 8 May 2012

तुम्हारी आँखें


तुम्हारी आँखें 

सपने है कुछ उनमें
कुछ बातें
और कुछ अनछुई हसीन यादें

तुम्हारी आँखें

एक राज़ गहरा छुपाती हैं,
करीब थोड़ा और बुलाती हैं
जो गौर से थोड़ा देखूं तोह
नजाने मुझे कहाँ ले जाती हैं 

तुम्हारी आँखें

कुछ कहती हैं मुझसे
धीरे से हर रात मेरे ख्यालों में
खोता जाता हूँ हर लम्हा कुछ और उनमें
जैसे एक जवाब उन खूबसूरत सवालों में 

तुम्हारी आँखें

देखूं उन्हें तो लगता है
दुनिया कुछ और निखर आई है
जैसे गुम सी एक मुस्कराहट
फिर मेरे होठों पे लौट आई है 

तुम्हारी आँखें

देखो इसी तरह रोज़ मुझे तड़पाती हैं
सो भी जाता हूँ
तो सपनो में इनसे मुलाक़ात हो जाती है 

तुम्हारी आँखें

काश कभी यूँहीं राह चलते हम मिल जायेंगे
पर क्या पता ये बात आपसे हम कभी कह पाएंगे
या फिर क्या पता आप और आपकी आँखों में ही 
हम हमेशा के लिए खो जायेंगे 

1 comment:

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