Friday 31 May 2013

जुगनुओं सी ...

जब तुम आती थीं,
उन काली रातों को,
छत को लांघ कर,
बिजली चले जाने के बाद,
चाँद पहरेदारी करते करते,
सो जाया करता था,
और तारे टिमटिमाते हुए गीत गाते थे,
हमारा मन बहलाते थे,
तुम मेरा सर अपनी गोद में रख,
बाल मेरे सहलाती थीं,
और दिन की सारी बातें,
फिर एक-एक कर बताती थीं,
मैं मंद मंद मुस्कुराता था,
तुम्हारे किस्से सुनता जाता था,
शिकायतें कितनी करती थी तुम,
और फिर एकदम से चूंटी काट पूछती,
"सुन रहे हो न"
"हाँ बाबा"
"क्या हाँ बाबा? बताओ शर्मा आंटी की कौनसी वाली बेटी की बात कर रही थी मैं?"
"शर्मा आंटी की बेटियां भी हैं?"
तुम गुस्सा हो जाती,
मैं हँसता था,
तुम गुस्से में भी बाल सहलाती,
जब हर पल फिरसे तुम्हारी मुस्कराहट
देखने  को तरसता था,
फिर दूर कहीं बैंड बाजे की आवाज़ आती थी,
और तुम्हारी आँखें बंद हो जाती थीं,
क्या सोचती,
क्या कुछ कहना चाहती थी?
मैं क्यों नहीं जान पाया,
क्यों नहीं पहचान पाया,
वही जो तुम मुझसे छुपाती थीं,
बस इन्ही चाँद तारों को बताती थीं,
मैं क्या कोई गैर था?
मुझसे कैसा बैर था?
पर शायद गलती मेरी है,
जो देख कर भी अनदेखा करता था,
दिल जो तुम्हारा था,
औरों पर फेंका करता था…

अब समझ आता है,
सालों बाद,
जब बस तुम्हारा नाम याद है,
वह छत याद है,
वह चाँद, वह तारे याद हैं,
अब तो शर्मा आंटी की तीनो बेटियों के नाम भी याद हैं,
तुम्हारा पुराना घर भी याद है,
बस नए वाले का पता अभी तक पूछने की
हिम्मत न जुटा पाया हूँ,
अब तो जनरेटर भी लग गया है,
कमबख्त लाइट ही नहीं जाती,
छत पर भी जाने का बहाना नहीं मिलता,
और चाँद-तारे भी सब जान चुके हैं,
की अब छत लाँघ कर बस बिल्ली आती है,
बिल्ली जैसी आँखों वाली नहीं,
बस कभी कोई रात अच्छी रही,
तो सपनो में तुम्हारी एक झलक दिख जाती है,
और याद आती हैं वह काली रातें,
जब छत लाँघ कर तुम आया करती थी,
फिर अपनी जुगनुओं सी बातों की चमक से,
मेरे आसमान को सजाया करती थी ...

Sunday 19 May 2013

Today I dreamt about you


I loved today.

I loved the simmering summer
And the sweat,
I loved the stink
And the shirt sticking to me,
Being wet.

I loved walking through the market,
People hurling abuses
And fighting with fists,
I loved all the excuses
That maid gave me,
About the leaves she took.

I loved the power cut
And staring at the fan,
I loved being chased by the stray dogs
And into a dark alley I ran,
And there I met these eunuchs
Who hassled me, bullied me
For my money
But I smiled and gave them all,
Then a bird shat in my tea,
While I was standing next to a roadside stall. 

In the evening, mom called
She scolded me for being late
But I didn’t wince,
or cursed my fate,
Later, I had a fight with my friends,
and now I have a bloodied nose
But that's okay,
I suppose.

I loved it all,
And this is something new,
I guess it’s 'cause,
Today I dreamt about you.