Wednesday 12 September 2012

Mehrooniyat




It kills me, whenever I look at that view. It kills me, when those memories keep rushing back. It kills me, whenever I miss you.
It was our last holiday, before you were about to leave me forever. It was the last day, when we were about to leave that place forever.



और फिर कुछ यूँ हुआ, 
तुम हलके से मुस्कुराई थी, 
मेरी गोद में आकर लेती, 
और थोड़ा कसमसाई थी 

"क्या हुआ?" 
"मेरी एक बात मानोगे?" 
मैंने हाँ में सर हिलाया था, 
"जब भी मेरी याद आये यहाँ आ जाया करना..
उन लहरों में तैरती मेरी यादों से मिल जाया करना...
तुम आओगे ना?"

अपनी आँखों से बहती कुछ बूंदों को पोंछ, 
मैंने मुस्कुराते हुए हाँ कर दिया था, 
एक बार फिर उसकी ख्वाहिशों के बोझ से, 
अपने कन्धों को भर दिया था... 

आज फिर लौटा हूँ मैं, 
तुम्हारी यादों की तलाश में, 
पिछली बार तो तुम्हारी आँखों की मासूमियत थी, 
और आज बस तुम्हारी बातों से भरी इन यादों की मेहरूनियत...

(The poem is based on this picture by Himani Bhati)

6 comments:

  1. No matter how many times i read it.. each time it gets even more beautiful.. :)

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  2. Wah! Aur aaj hum bas tuhmari bato se bhari in yado ki Mehroniyat! Beautiful.

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  3. This is lovely, soul touching!

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  4. It kills to read this! I read several times.. It killed every time!
    पिछली बार तो तुम्हारी आँखों की मासूमियत थी,
    और आज बस तुम्हारी बातों से भरी इन यादों की मेहरूनियत...Touching!

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  5. andaj-e-bayaan kuch issh tarh tha;
    ki harr jagah gam ke baadal chaa gae,
    unn chuninda khwahiso me aap;
    kuch khwahiso me hum samaaa gae the.........waah janaaam bahot khub....

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  6. Man! I had goosebumps reading this! Brilliant, Abhi. :)

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