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उस रात हवा कुछ यूँ चली थी,
घर में हर तरफ मची हुई खलबली थी,
चाचा ताऊ भैया भाभी,
सबकी तिजोरियों के तालों की थी बस एक ही चाभी,
जोर से चिल्ला कर सबने पुछा,
"बुढ़िया टपकी क्या रामू काका?"
ना की ध्वनि सुन,
उनका चेहरा थोड़ा मुरझाया था,
सबने फिर कोसा था उस मनहूस फैमिली डाक्टर को,
ना जाने
बुढ़िया पर उसने दवाइयों का क्या जादू चलाया था
बुढ़िया भी तो हरामी थी,
सारी जायदाद पर जो कब्ज़ा कर रखा था,
न जाने बुढ़ापे में कौनसे शौक पूरे करने का चूरण उसने चखा था
अब तो बस सबको यही था इंतज़ार,
की कब धरती का बोझ हल्का करेगी,
वह बुढ़िया बीमार
"भाभी चलो इसी बहाने हम इतने सालों बाद मिले तो सही.."
ननद मुस्कुरा कर बोली थी,
पहनी उसने नयी वाली घाघरा चोली थी,
अरे जश्न का माहौल था,
तभी आया लखनऊ वाले चाचाजी का कॉल था,
"अरे हमरे बिना पार्टी शुरू न कीजियेगा..."
ताऊ खिसिया कर बोले,
"अरे पहले बुढ़िया की जान तो खिसकने दीजियेगा.."
रामू काका फिर अचानक दौड़े दौड़े आये,
भैया उनके माथे की शिकन देख हलके हलके मुस्कुराये,
"अम्मा चल बसी.."
"अरे बधाई हो..."
हर तरफ मानो खुशियों की होली छाई हो
"अरे बर्फी लाओ..."
"बर्फी छोड़िये पहले बुढ़िया को शमशान लेजाने का इंतज़ाम तो करके आओ..."
फिर सबने मिलकर जल्दी-जल्दी पंडित का फ़ोन घुमाया,
माहौल देख पंडित ने सर खुजा कर पुछा,
"अरे भाई, अंतिम संस्कार कह कर, क्या शादी करवाने है बुलाया?"
पूजा सामग्री और लकड़ी का तख़्त,
पहले से ही था तैयार,
एडवांस में हुई सारी तैयारियाँ देख ताऊ बोले,
"क्यों हैं न मेरा बेटा समझदार..."
"अरे चिंटू सब इतना खुश क्यों हैं?"
उसकी कज़िन चीनू ने पुछा
"अरे इडियट, इतनी सारी जायदाद बेच अब बहुत सारे पैसे आयेंगे,
फिर मम्मी डैडी हमें ऐश कराएँगे..."
"ये ऐश क्या होता है?"
पास बैठा बिट्टू मुस्कुरा कर बोला,
"अल्ले, अब हमें घुमाने वह एस्सेल वर्ल्ड ले दायेंगे..."
उधर वकील साहब भी अपनी फटफटिया पर बैठ,
तुरंत आ धमके थे,
आखिरकार उनके सितारे भी तो चमके थे,
बुढ़िया की जायदाद में घोटाला कर उन्होंने ही तो सारा माल हड़पवाया था
अब उनके भी सारे सपने पूरे होने जा रहे थे,
रास्ते में मारुती शोरूम से वोह नई वाली आल्टो का आर्डर दे कर आ रहे थे,
"पक्का टपकी है ना?"
वकील साहब ने घुसते ही पुछा था,
"अरे इन देसी घी में बनी बर्फियों की कसम.."
सबके चेहरों पर छाया एक अलग ही सुख था,
और लालाजी की काजू बर्फियों ने दूर भगाया था,
बुढ़िया के टपकने का जो भी रहा-सहा दुःख था
"भाई वाह, मजे आ गए| कितने की पड़ी ये बर्फी?"
पंडित जी ने भी मज़े से चख कर बोला,
"अरे पंडित जी, बर्फी बाद में खाइएगा, ये बोलो आपने अपना पोटला खोला?"
उधर से लखनऊ वाले चाचा भी धमक गए थे,
साथ आई चची को देख,
इंदौर वाले ताऊ और पटना वाले फूफा के चेहरे कुछ और चमक गए थे...
"चलो चलो अम्मा जी को लाइए..."
पंडित जी तैयारियाँ पूरी कर जैसे ही बोले,
सबको मानो बिजली का झटका लग गया,
जब सामने खड़ी अम्मा ने झल्ला कर पुछा,
"अरे रामू, ये कौन टपक गया?"
Great poem to read... By chance I got to your blog but I think time poem made my visit worth.. Keep it up bro.
ReplyDeleteThanks a lot man, and I hope you enjoy my poems :)
DeleteAmazing Poem bro.. Hope u will entertain us with more poems in future.
ReplyDeleteThanks
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Thank you so much, and Yes I will :)
Deleteउसकी कज़िन चीनू ने पुछा - My nick name is also Chinu :P
ReplyDeleteIts a mixuture of fun and satire. Good read :)
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