Tuesday, 23 July 2013

Kuch toh pagal pehle se hun main ...

कुछ तो पागल पहले से हूँ मैं
अब और न पागल बनाओ मुझे, 
बहुत बहला चुके हो तुम, 
बस करो , अब और न बहलाओ मुझे ...

चुप सा बैठा हूँ मैं, 
अनजानों की दास्तान न बतलाओ मुझे, 
बस यूँही अपने में खो जाने दो, 
बेमतलब की बातें न और समझाओ मुझे ...

खो चुका हूँ कई बार इन्ही रास्तों में, 
न और कोई मंजिल की कहानी सुनाओ मुझे, 
अँधेरे की आदत अब पड़ सी गयी है, 
सूरज की राह न ले जाओ मुझे ...

दो कदम तो अकेला चलने दो, 
यूँ दुनिया भर के सपने न दिखलाओ मुझे, 
कुछ तो पागल पहले से हूँ मैं, 
अब और न पागल बनाओ मुझे ...

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