कुछ तो पागल पहले से हूँ मैं,
अब और न पागल बनाओ मुझे,
बहुत बहला चुके हो तुम,
बस करो , अब और न बहलाओ मुझे ...
चुप सा बैठा हूँ मैं,
अनजानों की दास्तान न बतलाओ मुझे,
बस यूँही अपने में खो जाने दो,
बेमतलब की बातें न और समझाओ मुझे ...
खो चुका हूँ कई बार इन्ही रास्तों में,
न और कोई मंजिल की कहानी सुनाओ मुझे,
अँधेरे की आदत अब पड़ सी गयी है,
सूरज की राह न ले जाओ मुझे ...
दो कदम तो अकेला चलने दो,
यूँ दुनिया भर के सपने न दिखलाओ मुझे,
कुछ तो पागल पहले से हूँ मैं,
अब और न पागल बनाओ मुझे ...
but give life a chance
ReplyDeletebohot sundar likhte ho
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