एक तारों वाली रात में देखा है उसे,
काली रात जैसे राज़ अपनी मुट्ठी में भींचे हुए,
कुछ ख्वाब अपने ज़हन में सींचे हुए
एक कोहरे वाली सुबह में देखा है उसे,
सूरज की किरणों संग बातें करती हुई,
फूलों में रोज़ नयी खुशबुएँ भरती हुई
एक सर्दियों की शाम देखा है उसे,
दुनिया को नए रंगों से सजा रही थी,
न जाने कहाँ से इतनी मुस्कुराहटें बटोर के ला रही थी
एक लड़की कुहेली सी,
कोहरे की इन महीन परतों के पीछे,
आज भी यूँ हीं कभी किसी ख़ास लम्हे में दिख जाती है,
और कभी जो मैं कुछ कहना चाहूँ,
तो हलके से मुस्कुरा कर,
एक हसीन सपने की तरह फिर जाने कहाँ गायब हो जाती है ...
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