चलते चलते नंगे पाँव,
न जाने कितने ही मील चल दिए,
चुभते कांटे वालों इन राहों में,
न जाने कितने ही फूल हमने छल दिए
जेबों में पड़े सपने,
कहीं रास्तों में गिर कर टूट गए,
कभी तारों तले जिनके संग वो ख्वाब बुन थे,
वो वहीं कहीं तारों में ही छूट गए
ज़िन्दगी की राहों पर,
जो मुरझा जाना कभी बेकाम सा लगता था,
आज उसी राह का हर मोड़,
जैसे आंसुओं का मुकाम सा लगता है
एक एक कर,
बारिश हर बूँद पिया करते थे,
एक एक कर,
हर पल में ज़िन्दगी एक और जिया करते थे
नीले आसमान तले,
जो सपने कभी सुहाने लगते थे,
उसी काले आसमान के तले,
आज हकीकत को भूल जाने के बहाने लगते हैं
कभी उनकी एक एक मुस्कराहट को मुट्ठी में भरने को,
तलवे छिल जाने तक हम दौड़े थे
आज उन्ही के सूखे आंसू याद दिलाते हैं,
की हमारे ये जज़्बात ही सभी भगोड़े थे
खैर,
अब युँही चलते चलते नंगे पाँव,
कुछ दूर और चले आयेंगे
वहीं कहीं २ गज गहरा एक गड्ढा है,
उसी में हर हसरत हर ख्वाब दबा
आज फिर कहीं निकल जायेंगे...
Keep writing.
ReplyDeletelovely...!!
ReplyDeleteThis is beautiful! :]
ReplyDeletei just luv ur work <3
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