Friday, 13 April 2012

Kabhi kabhi aisa hota hai...

कभी कभी ऐसा होता है, 

पिछली रात चाँद संग जो सपने सजाये थे, 
वोह दिल के ही किसी कोने में छूट जाते हैं 

जो राज़ हमने तारों में छुपाये थे, 
सूरज की किरणों पे तैरते हुए फिर वापस आ जाते हैं 

जो आंसू हमने अंधेरों में कहीं छुपा दिए थे, 
वोह फिर सुबह की चाय संग घुल कर थोड़ा और दुखाते हैं 

कभी कभी ऐसा होता है, 

सुबह के अख़बार की नयी ख़बरों संग, 
पुरानी यादें फिर लौट आती हैं, 
जो कभी एक डिबिया में बंद कर मिटटी में गाड़ दीं थी 

सुबह सुबह हवा का पहला झोका, 
आज भी उसकी आखरी खुशबू लेकर आता है, 
तोह रह रह कर मेरी नज़र उसी डायरी पर पढ़ती है, 
जिसके पन्नो तले उसका दिया हुआ एक गुलाब दफ़न है, 

कभी कभी ऐसा होता है, 

दिन तोह निकल आता है, 
पर रात एक अनचाहे दोस्त की तरह साथ बैठे बतियाती रहती है 
और मैं अपने कान तोह बंद करना चाहता हूँ, 
पर जैसे किसी ने मेरे हाथों को जकड़ रखा हो।

5 comments:

  1. "जो राज़ हमने तारों में छुपाये थे,
    सूरज की किरणों पे तैरते हुए फिर वापस आ जाते हैं".......waah!

    one word....fabulous! keep writing.

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  2. उम्दा!

    @TheSlumDawg

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