Tuesday, 5 February 2013

Dilli ke doston (tum milo toh sahi)...



दिल्ली के इस हसीं मौसम में,
तुम मिलो तो सही,
कुछ यादें कुछ मुस्कुराहटें ढूँढेंगे

इस शहर की संकरी गलियां,
और उससे भी संकरे दिल,
उन्ही दिलों के बीच बाकी बची एक रंगीन महफ़िल ढूंढेंगे

दरियागंज की उन पुरानी किताबों,
के पीले पड़े पन्नों पर किसी की उँगलियों के निशाँ के बीच,
एक यूँहीं गिरी आंसू की बूँद में बसी किसी की याद ढूंढेंगे

पर तुम मिलो तो सही,

पूनम की रात,
सुनहरे जगमगाते लाल  किले की,
दीवारों पर रंगी लाली लूटेंगे

चांदनी चौक की चमक में,
खो जायेंगे फिर हम दोनों,
और फिर उस रात के किस्से हमारी यादों से कभी न छूटेंगे

कमला मार्किट में,
सन्डे की सुबह मैगी नूडल्स के बीच,
बाकी बची फिर थोड़ी ज़िन्दगी ढूंढेंगे

ऐ दोस्त,
बस तुम मिलो तो सही...

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